
जातिगत जनगणना भारत में सामाजिक संरचना की नई तस्वीर
भारत में जातिगत जनगणना को लेकर हाल ही में बड़ा फैसला लिया गया है। केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जातिगत गणना को शामिल किया जाएगा। यह निर्णय राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इससे देश की सामाजिक संरचना को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
जातिगत जनगणना का मुद्दा लंबे समय से चर्चा में रहा है। स्वतंत्रता के बाद से भारत में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गणना होती रही है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अन्य जातियों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं थी। 2011 में तत्कालीन सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) करवाई थी, लेकिन इसके जातिगत आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए थे।
इस बार सरकार ने जातिगत गणना को राष्ट्रीय जनगणना का हिस्सा बनाने का फैसला किया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि यह कदम पारदर्शिता सुनिश्चित करने और समाज में संदेह की स्थिति को खत्म करने के लिए उठाया गया है। विपक्षी दलों ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम बताया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि यह उनकी पार्टी की लंबे समय से चली आ रही मांग की जीत है।
जातिगत जनगणना के समर्थकों का मानना है कि इससे विभिन्न जातियों की वास्तविक जनसंख्या का पता चलेगा, जिससे आरक्षण और अन्य सामाजिक कल्याण योजनाओं को अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा। बिहार में हाल ही में हुई जातिगत गणना में पाया गया कि राज्य में OBC और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की जनसंख्या 63% से अधिक है। ऐसे आंकड़े नीति निर्धारण में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
हालांकि, इस फैसले पर विवाद भी है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जातिगत जनगणना से सामाजिक विभाजन बढ़ सकता है और जातिगत राजनीति को बढ़ावा मिल सकता है[
जातिगत जनगणना: भारत में सामाजिक संरचना की नई तस्वीर
भारत में जातिगत जनगणना को लेकर हाल ही में बड़ा फैसला लिया गया है। केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जातिगत गणना को शामिल किया जाएगा। यह निर्णय राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इससे देश की सामाजिक संरचना को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
जातिगत जनगणना का मुद्दा लंबे समय से चर्चा में रहा है। स्वतंत्रता के बाद से भारत में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गणना होती रही है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अन्य जातियों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं थी। 2011 में तत्कालीन सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) करवाई थी, लेकिन इसके जातिगत आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए थे।
इस बार सरकार ने जातिगत गणना को राष्ट्रीय जनगणना का हिस्सा बनाने का फैसला किया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि यह कदम पारदर्शिता सुनिश्चित करने और समाज में संदेह की स्थिति को खत्म करने के लिए उठाया गया है। विपक्षी दलों ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम बताया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि यह उनकी पार्टी की लंबे समय से चली आ रही मांग की जीत हे ।
जातिगत जनगणना के समर्थकों का मानना है कि इससे विभिन्न जातियों की वास्तविक जनसंख्या का पता चलेगा, जिससे आरक्षण और अन्य सामाजिक कल्याण योजनाओं को अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा। बिहार में हाल ही में हुई जातिगत गणना में पाया गया कि राज्य में OBC और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की जनसंख्या 63% से अधिक है। ऐसे आंकड़े नीति निर्धारण में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
हालांकि, इस फैसले पर विवाद भी है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जातिगत जनगणना से सामाजिक विभाजन बढ़ सकता है और जातिगत राजनीति को बढ़ावा मिल सकता है। वहीं, सरकार का कहना है कि यह कदम सामाजिक समरसता को मजबूत करने और सभी वर्गों को समान अवसर देने के लिए उठाया गया है।
अब सवाल यह है कि इस जनगणना को कब और कैसे लागू किया जाएगा। सरकार ने अभी तक इसकी विस्तृत रूपरेखा जारी नहीं की है। लेकिन यह तय है कि आने वाले वर्षों में जातिगत जनगणना को लेकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर गहन चर्चा होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस कदम से भारत की सामाजिक संरचना में क्या बदलाव आते हैं और यह नीति निर्माण में कैसे योगदान देता है।